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Friday, March 23, 2012

एंकर नहीं शेखर

शेखर सुमन दोबारा छोटे परदे पर आ रहे हैं। 'मूवर्स एंड शेकर्स" में वे आज के मुद्दों पर कटाक्ष करते हैं, वहीं अपने क्षेत्र के कुछ बेहतर करने वालों से रू-ब-रू भी होते हैं। दोबारा शुरू हुए इस शो में वे अन्ना हजारे को लाना चाहते थे लेकिन यह हो न सका. पहले शो में गोविंदा का आना हुआ और इस शो  के शुरू होने से पहले विनीत उत्पल  को बताया

मूवर्स एंड शेकर्स

जिस तरह मेरी जिंदगी में 'उत्सव" मील का पत्थर है, उसी तरह रिपोर्टर, देख भाई देख, पोल खोल है तो मूवर्स एंड शेकर्स भी है। यह दूसरा चांस है जब लोग मेरे साथ होंगे। चूंकि दोबारा हमारी परंपरा में है, इसलिए 11 साल बाद मैं फिर दर्शकों के सामने हूं दोबारा। इस बार थोड़ा नया कांसेप्ट होगा। वह शो 1997 से लेकर 2001 तक चला था। 2012 में फिर से दोबारा शुरू हो रहा है। इस बार सेट नया है, सेलिब्रोटी नये हैं।
ग्यारह साल बाद
एक्टर गलतियां करता है, उससे सीखता है। समय के साथ लोगों की सोच भी बदलती है, फिलॉस्फी बदलती है। इस शो में वास्तविकता है, ताजगी है, विविधता है और 11 साल बाद पहले के मुकाबले अधिक परिपक्व शेखर से आपकी मुलाकात होगी। कंट्रोवर्सी तो होती रहती है लेकिन कई बार काफी दिलचस्प और गंभीर बातें भी सामने आती हैं। लोग अभी तक यह नहीं सीख पाए हैं कि खुद पर कैसे हंसा जाए।
'हम सभी भारतीयों का डीएनए एक जैसा है। सोच भी लगभग एक-सी ही होती है। कुछ आप जीतते हैं तो कुछ आप हारते भी हैं'
लेट नाइट शो
इस शो के लेट नाइट होने का कारण यह है कि हमारे देश में अधिकतर लोग नौकरी-पेशे वाले हैं और वह जब थक-हार कर घर आते हैं तो या तो वे सोना चाहते हैं या फिर टीवी पर हल्के-फुल्के मनोरंजन वाले शो देखना पसंद करते हैं। उनको ध्यान में रखकर शो को लेट नाइट रखा गया है।
व्यंग्य या कॉमेडी
हास्य एक पक्ष है। अक्षय कुमार फिल्म में कॉमेडी करते हैं, शाहरुख खान भी कॉमेडी करते हैं तो वह कॉमेडियन नहीं हो जाते बल्कि वह एक्टर होते हैं। आर.के. लक्ष्मण के कार्टून से प्रभावित हूं। मैंने उसी कार्टून के आम आदमी को जबान दी है। मेरा मानना है कि मूवर्स एंड शेकर्स कभी खत्म हुआ ही नहीं था क्योंकि हम लोग हर पल कटाक्ष करते हैं। मैं एंकर नहीं हूं, अभिनेता हूं और सिर्फ अभिनय करता हूं।
पहचान
मूवर्स एंड शेकर्स में मेरी पहचान बनी। सीजन वन में आठ सौ शो चला था और कोई भी शो इसके नजदीक नहीं आ सका। अंग्रेजी में एक कहावत है, जैक ऑफ आल ट्रेड, मास्टर ऑफ नन।इसलिए मैं सब कुछ करने की कोशिश करता हूं। लेकिन सब कुछ को कॉमेडी में नहीं बांधा जा सकता है। व्यंग्य की मार दी जा सकती है। मैं जनता की आवाज बनना चाहता हूं।
जिंदगीजिंदगी में एक चौराहा आता है, एक दौर आता है जब आप सोचते हैं कि कहां जाना है। जो सूरत मिलनी चाहिये, नहीं मिल रही है। सफलता के लिए विश्लेषण जरूरी है। क्रिटिसिज्म जो करता है, वह आपका दोस्त होता है, सही राह दिखाता है। जिंदगी में कंपीटिशन हमेशा रहा है, चैनल एक था और सभी उसमें आना चाहते थे।
अफसोस
काश, इतनी सारी जिम्मेदारियां नहीं होतीं। इतने पब्लिक डोमैन में होने के कारण काफी मिस करता हूं। थियेटर के लोगों की तरह जीना चाहता हूं। दिल्ली के श्रीराम सेंटर से ट्रेनिंग ली थी। आजाद वातावरण में रहना चाहता हूं लेकिन काम के प्रेशर के कारण कुछ कर नहीं पाता हूं।  मनोहर सिंह, पंकज कपूर, राजेश, विवेक, उत्तरा ओबर काफी याद आते हैं।
गेस्ट
हम सभी भारतीयों का डीएनए एक जैसा है। सोच भी लगभग एक-सी ही होती है। कुछ आप जीतते हैं तो कुछ आप हारते भी हैं। जो न्यूज में होंगे, हम उन्हें बतौर गेस्ट बुलाएंगे। कहने का अपना ढंग होता है। कोई अपशब्द या गाली का प्रयोग करता है तो कोई उसी बात को सभ्य भाषा में कह देता है। वक्त से आगे कभी भी ऑडियंस नहीं देखता।

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