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Sunday, September 13, 2009

कितना जानते हैं आगरा घराने को

शास्त्रीय संगीत के कई घरानों में से एक आगरा घराना अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। इस विरासत को संभालकर रखने वाले अब कुछ लोग ही बचे हैं। 400 साल पुराने इस घराने के आखिरी बड़े प्रतिनिधि उस्ताद अकील अहमद साहब इसी शहर में बेबसी की जिंदगी जी रहे हैं। हालांकि, इस परंपरा को बचाए रखने के लिए वह अभी भी कुछ उभरते गायकों को तालीम देने में जुटे हुए हैं। लेकिन इसके बाद क्या? इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है।
ललित कला संस्थान में शिक्षक ज्योति खंडेलवाल का कहना है कि लुप्त हो रही इन परंपराओं को संभालने की महती जरूरत है। संगीत की दूसरी धाराओं में महारत हासिल करने के लिए शास्त्रीय संगीत की जानकारी बहुत अहम है।
इप्टा के राष्ट्रीय सचिव जितेंद्र रघुवंशी का मानना है कि आगरा घराने की जमीन न केवल आगरा में बल्कि पूरे देश में है। इस मुगलकालीन संगीत परंपरा को बचाने में कई शास्त्रीय गायक जुटे हुए भी हैं।
आगरा के ही वाशिंदे, उभरते गजल गायक लईक खान कहते हैं कि आगरा घराना अभी खत्म नहीं हुआ है। सारी दुनिया में इसके प्रशंसक फैले हुए हैं। लेकिन, आगरा में इस स्वर्णमयी परंपरा को बचाए रखने का कोई प्रयास नहीं हो रहा है।
"यह केवल आगरा घराना ही है जो अभी भी ध्रुपद-धामर, अलाप, खयाल, ठुमरी, टप्पा, तराना, होरी, दादरा, गजल, रसिया आदि का गायन जारी रखे हुए है", कहना है सांस्कृतिक आलोचक महेश धाकड़ का।
आगरा के दूसरे संगीतकारों ने भी इस जैसी संगीत परंपराओं की खोती चमक पर रोष जताया है। केवल कुछ संस्थान ही इन सांस्कृतिक विरासतों को बचाए रखने का प्रयास कर रहे हैं। जबकि ललित कला संस्थान में जारी कुछ पाठ्यक्रमों को विद्यार्थियों में रुचि न होने के कारण बंद कर दिया गया।
बृजमंडल हेरिटेज कंजर्वेशन सोसायटी के अध्यक्ष सुरेंद्र शर्मा ने कहा कि "अब समय आ गया है कि आगरा घराना की विरासत को बचाए रखने के लिए ठोस कदम उटाए जाएं"।
(एनडीटीवी से साभार)