M.F.Husain

Pages

Showing posts with label जयप्रकाश त्रिपाठी. Show all posts
Showing posts with label जयप्रकाश त्रिपाठी. Show all posts

Wednesday, October 2, 2013

करगिल की कलायात्रा

जयप्रकाश त्रिपाठी
कम लोग जानते होंगे कि आम भारतवासी के मन में 'वार जोन" के नाम से पहचान बनाने वाले करगिल में बंदूक आैर बारूद की जगह कूची, कलम आैर लोकसंगीत की अनूठी त्रिवेणी भी बहती है। इस क्रम में पिछले पखवाड़े लद्््दाख के करगिल में जम्मू एंड कश्मीर कल्चरल अकादमी ने सात दिवसीय 'ऑल इंडिया पेंटिंग कैंप" का आयोजन किया। कैंप के दौरान दो दिन के सांस्कृतिक उत्सव में क्षेत्रीय लोक गीत व लोक नृत्यों का भी समा बंधा। इस मौके पर करगिल जैसे संवेदनशील इलाके में दर्शकों से खचाखच भरा ऑडिटोरियम कला आैर संस्कृति के प्रति अनुराग की मिसाल पेश कर रहा था। आधुनिक आैर सुविधासंपन्न शहरों में भी कला के प्रति ऐसी अनुरक्ति देखने को नहीं मिलती।
'ऑल इंडिया पेंटिंग कैंप" के पहले दिन शाम से ही लोकगीत आैर लोक नृत्यों का अद्भुत नजारा देखने को मिला। लगा कि गीत, संगीत आैर नृत्य की कोई भाषा नहीं होती। देश के तमाम हिस्सों से आये कलाकार स्थानीय कलाकारों का तालियों से उत्साह बढ़ा रहे थे आैर उनके सुर-संगम में पूरी तन्मयता से डूबे थे। अगले दिन मुशायरे का वह जादू बिखरा कि कब शाम हो गयी पता ही नहीं चला। इन दो दिनों में वहां की संस्कृति के साथ आत्मसात होना कलाकारों के लिए बड़ा सुखद अनुभव था। कलाकरों की तूलिकाएं उसी अंदाज में रंगों के प्रवाह में बहती चलीं गर्इं। उन्हें लगा कि इतनी शांति प्रिय जगह को 'वॉर जोन" न कह कर 'शांत जोन" कहना ज्यादा युक्तिसंगत होगा।
ऑल इंडिया पेंटिंग कैंप में सभी कलाकार अपनी भावनाओं को कैनवस में उतार रहे थे। वहां देशभर से आये कलाकार एक साथ काम कर रहे थे। सबकी तकनीक, विषय आैर रंग बेशक अलग-अलग थे मगर कैनवस पर उतारी जाने वाली कृतियों में पूरा करगिल समाया था। यह पेंटिंग कैम्प इस मायने में भी खास कहा जाएगा क्योंकि यहां आयोजित होने वाला यह पहला आर्ट कैम्प था, जिसे स्कूली बच्चों आैर कलाप्रेमियों में देखने की बहुत उत्सुकता थी।
सात दिनों के इस कैंप में देश भर से शिरकत कर रहे कलाकारों में जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ कलाकार गोकुल डैम्बी जिंदादिली की मिसाल लगे। उन्होंने चटख रंगों का प्रयोग बड़े निराले अंदाज मंे किया, जिसे वहां के वातावरण में देखा जा सकता है। सीमित रंगों आैर रेखाओं के माध्यम से दो कैनवस जोड़कर शांति आैर एकता की प्रतीक कलाकृति को मूर्तरूप दिया श्रीनगर के वरिष्ठ कलाकार महबूब ने। इस कृति में क्रास की शक्ल में रखी संगीनों के ऊपर शांति का दूत सफेद कबूतर अपनी पूरी बात कह जाता है।
J.P. Tripathi
श्रीनगर के एक आैर वरिष्ठ कलाकार महाराजा भट्ट, जो दिल्ली में रहकर कला कर्म कर रहे हैं, की कृति देखना भी सुखद रहा। भट्ट को कला इतिहास आैर कलाकारों के काम की अच्छी समझ है। उन्हें कलाकारों के विचारों को सुनना भी अच्छा लगता है। ठोस रेखाआंे में चित्रण करने वाले भट्ट के ब्राश का हर स्ट्रोक सधा हुआ लगता है। उनके कैनवस में पहाडि़यों से निकलता लाल रंग का एक पांव करगिल की संघर्षरत जनता की कर्मठता दर्शाता है, जो अपने परिश्रम से विजय पाने को आतुर है। दूर से देखने पर रंग भले ही सपाट लगते हों, पर नजदीक से हर स्ट्रोक में खूबसूत लय दिखती है।
 देश-विदेश में कई कला प्रर्दशिनयां कर चुके जम्मू के सुमन गुप्ता अपनी मूर्त (रियलिज्म) कला के लिए जाने जाते हैं। इस कैंप में किए गए इनके काम ने सबको आकृष्ट किया। कारगिल की रेतीली धूूल-धूसर पहाडि़यों को सजीवता से दर्शाती इनकी कलाकृति के हर हिस्से में किया गया डिटेल काम कलाकार के धैर्य का परिचायक है। सुमन ने बेजान पहाडि़यों में राज्य के पक्षी को भी बड़ी सजीवता से चित्रित किया है।
चंडीगढ़ के जाने-माने कलाकार मदन लाल ने अपने कैनवस में पूरे करगिल की परिभाषा गढ़ डाली। उनके उजले रंग आकर्षक हैं। वह एक रंग पर दूसरे रंग की लेयर का प्रयोग चतुराई से करते हैं। उन्होंने वहां के परिधान, काश्तकारी या प्रयोग में लायी जाने वाली प्रत्येक वस्तु को बारीक रेखाओं, तिकोने व छोटे-छोटे बिंदुओं के रूप में ऐसा संजोया है कि वह अलग-अलग आकृतियों का हिस्सा बन जाते हैं। उत्तर प्रदेश के नवल किशोर की कलाकृति में दो आकृतियां कुछ कहने को आतुर दिखीं। बोलती रेखाओं आैर लयबद्ध आकृतियों के अंदर कई आकार लिए चेहरों व आकृतियांे में कलाकार ने हर संभव जान डालने का प्रयास किया है। पूरे कैनवस में टैक्स्चर का प्रयोग आकर्षक है।
जम्मू के वरिष्ठ कलाकार जंग बहादुर ने अपनी कृति में करगिल की प्राकृतिक छटा बिखेरी। उन्होंने नीले रंगों का प्रयोग ज्यादा किया। हैदराबाद की चित्रकार पद्मा ने एक मासूम स्थानीय लड़की को दर्शाया है। उसके चारों ओर करगिल की सर्पीली सड़कों पर दौड़ते वाहनों को रेखाओं में उकेरा गया है। गाढ़े रंग की उजली आकृति लोगों को आकृष्ट करती है।
श्रीनगर के तीन आैर युवा कलाकर इफ्तिखार, युसूफ आैर तारिक ने भी अपनी चित्रकारी के हुनर दिखाए। इफ्तिखार ने सादगी से सफेद व लाल रंग में उर्दू शब्द उकेरे। युसूफ ने कैनवस पर ज्यामितीय आकार में अलग-अलग रंगों से प्रकाश दर्शाया। तारिक ने परंपरागत परिधान में स्वागत के सुर बिखेरते शहनाई वादक का चित्र उकेरा। जाने-अनजाने ये चित्रकार एमएफ हुसैन से प्रेरित लगते हैं। हालांकि  रंगों का मिश्रण उन्हें इससे अलग रखता है पर रेखाआंे में इसका प्रभाव दिखता है।
जम्मू कश्मीर की दो आैर चित्रकारों में नसरीन आैर मिलन शर्मा में से नसरीन दिल्ली के निकट गाजियाबाद में रह कर काम कर रही हैं। इनकी कृति में फ्रेम के अंदर सुंदर-सी लड़की के पीछे हरे-भरे पेड़ों से सजी खूबसूरत घाटी है। फ्रेम में कैद लड़की आजादी की कामना करती दिखती है ताकि खुली वादियों में विचरण कर सके। मिलन शर्मा तकनीकी दृष्टि से सुदृढ़ हैं। इनकी कृति में पहाडि़यों की ऊंची-ऊंची चोटियों के सर्पीले घुमावदार रास्ते में एक लड़की विचरण करते हुए हवा में झूल-सी गयी है। रंग संयोजन इस तरह है कि चित्र के मोनोटोनस होते हुए भी ब्राश के हर स्ट्रोक को देखा जा सकता है।
चित्रकारों की पांत में शामिल मेरे कलाकार मन ने भी शांत, शीतल करगिल के पहाड़ों को कैनवस पर उतारा। इस चित्र को सफेद व स्याह एक्रलिक रंगों से मिलाकर सादगी का रूप दिया गया।
कोई भी कलाकार जहां जाता है, वहां की भाषा, रंग-रूप आैर प्राकृतिक सुंदरता आदि को अपने जेहन में हमेशा के लिए संजो लेता है आैर उसका प्रभाव भविष्य में कहीं न कहीं उसकी कला पर जरूर दिखता है। इस रूप में इस कैंप में शिरकत करने वाले कलाकारों ने भी करगिल की यादों को अपने रंग आैर रेखाओं में सहेज लिया है। निश्चित ही इसका प्रभाव उनके आने वाले चित्रों में देखने को मिल सकता है।
courtsy: rashtriya sahara